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परा॑ ऋ॒णा सा॑वी॒रध॒ मत्कृ॑तानि॒ माहं रा॑जन्न॒न्यकृ॑तेन भोजम्। अव्यु॑ष्टा॒ इन्नु भूय॑सीरु॒षास॒ आ नो॑ जी॒वान्व॑रुण॒ तासु॑ शाधि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

para ṛṇā sāvīr adha matkṛtāni māhaṁ rājann anyakṛtena bhojam | avyuṣṭā in nu bhūyasīr uṣāsa ā no jīvān varuṇa tāsu śādhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परा॑। ऋ॒णा। सा॒वीः॒। अध॑। मत्ऽकृ॑तानि। मा। अ॒हम्। रा॒ज॒न्। अ॒न्यऽकृ॑तेन। भो॒ज॒म्। अवि॑ऽउष्टाः। इत्। नु। भूय॑सीः। उ॒षसः॑। आ। नः॒। जी॒वान्। व॒रु॒ण॒। तासु॑। शा॒धि॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:28» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वरुण) सर्वोत्कृष्ट (राजन्) सर्वत्र प्रकाशमान जगदीश्वर आप (मत्कृतानि) मेरे लिये (परा) उत्तम (णा) णों को (सावीः) सिद्ध चुकते कीजिये जिससे (अहम्) मैं (अन्यकृतेन) अन्य ने किये से (मा,भोजम्) न भोगूँ (अध) और अनन्तर आप जो (भूयसीः) बहुत (उषासः) दिन (अव्युष्टाः) रक्षादि में निवास को प्राप्त हैं (तासु) उन दिनों में (इत्) ही (नः) हम (जीवान्) जीवों को (आ,शाधि) अच्छे प्रकार शिक्षित कीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - जैसे ईश्वर जिसने जैसा कर्म किया है, उसको वैसा फल देता है, वेद द्वारा सबको शिक्षा करता, वैसे ही विद्वानों को अनुष्ठान करना चाहिये ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह।

अन्वय:

हे वरुण राजन्नीश्वर त्वं मत्कृतानि परा णा सावीः। यतोऽहमन्यकृतेन मा भोजमध त्वं या भूयसीरुषासोऽव्युष्टाः सन्ति ताः स्विन्नु नो जीवानाशाधि ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (परा) पराणि (णा) णानि (सावीः) सुनु (अध) अथ (मत्कृतानि) मया कृतानि मत्कृतानि (मा) (अहम्) (राजन्) सर्वत्र प्रकाशमान (अन्यकृतेन) अन्येन कृतेन (भोजम्) भुञ्जेः। अत्र विकरणव्यत्ययेन शबटोऽभावश्च (अव्युष्टाः) अविषु रक्षणादिषूष्टाः कारितनिवासाः (इत्) (नु) सद्यः (भूयसीः) बह्वीः (उषासः) उषसो दिनानि। अत्राऽन्येषामपीत्युपधादीर्घः (आ) (नः) अस्मान् (जीवान्) (वरुण) सर्वोत्कृष्टजगदीश्वर (तासु) उष:सु (शाधि) शिक्षस्व ॥९॥
भावार्थभाषाः - यथेश्वरो येन यादृशं कर्म क्रियते तस्मै तादृशं फलं ददाति वेदद्वारा सर्वान् शिक्षते तथैव विद्वद्भिरप्यनुष्ठेयम् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याने जसे कर्म केलेले असेल तसे फळ ईश्वर त्याला देतो, वेदाद्वारे सर्वांना शिक्षण देतो, तसे विद्वानांनी अनुष्ठान करावे. ॥ ९ ॥